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द्रौपदी भारतीय महाकाव्य महाभारत की एक केंद्रीय स्त्री पात्र रही है, जिसे परंपरागत रूप से एक पीड़िता, प्रतिशोध की प्रतीक या धर्म की वाहक के रूप में देखा गया है। परंतु इस पुस्तक में द्रौपदी को एक लोक-नायिका के रूप में प्रस्तुत किया गया है - जो हरियाणवी रागनी परंपरा में जन-मन की चेतना, प्रतिरोध और आत्मसम्मान की प्रतीक बनकर उभरती है। लेखक आनन्द कुमार आशोधिया ने इस ग्रंथ में द्रौपदी के चरित्र को हरियाणवी रागनियों, लोक कथाओं और जनगीतों के माध्यम से पुनर्पाठित किया है। यह पुनर्पाठ केवल साहित्यिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक स्तर पर भी महत्वपूर्ण है। पुस्तक में द्रौपदी की छवि को लोक की दृष्टि से…mehr

Produktbeschreibung
द्रौपदी भारतीय महाकाव्य महाभारत की एक केंद्रीय स्त्री पात्र रही है, जिसे परंपरागत रूप से एक पीड़िता, प्रतिशोध की प्रतीक या धर्म की वाहक के रूप में देखा गया है। परंतु इस पुस्तक में द्रौपदी को एक लोक-नायिका के रूप में प्रस्तुत किया गया है - जो हरियाणवी रागनी परंपरा में जन-मन की चेतना, प्रतिरोध और आत्मसम्मान की प्रतीक बनकर उभरती है। लेखक आनन्द कुमार आशोधिया ने इस ग्रंथ में द्रौपदी के चरित्र को हरियाणवी रागनियों, लोक कथाओं और जनगीतों के माध्यम से पुनर्पाठित किया है। यह पुनर्पाठ केवल साहित्यिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक स्तर पर भी महत्वपूर्ण है। पुस्तक में द्रौपदी की छवि को लोक की दृष्टि से देखा गया है - जहाँ वह केवल एक पात्र नहीं, बल्कि एक विचार, एक चेतना और एक प्रतिरोध की आवाज़ बन जाती है। पुस्तक तीन प्रमुख खंडों में विभाजित है 1. रागनी संग्रह: इसमें हरियाणवी लोक कवियों द्वारा रचित द्रौपदी विषयक रागनियों का संकलन है। ये रचनाएँ द्रौपदी को एक साहसी, स्वाभिमानी और संघर्षशील स्त्री के रूप में प्रस्तुत करती हैं। 2. समीक्षा खंड: इस भाग में लेखक ने रागनियों की शिल्पगत, भावगत और विमर्शात्मक समीक्षा की है। यहाँ द्रौपदी के चरित्र को स्त्री-विमर्श, लोक-संस्कृति और सामाजिक संदर्भों में विश्लेषित किया गया है। 3. पुनर्पाठ खंड: यह खंड द्रौपदी के चरित्र का पुनः मूल्यांकन करता है - जहाँ वह नारी अस्मिता, लोक प्रतिरोध और सांस्कृतिक पुनरावृत्ति की प्रतीक बनकर सामने आती है। पुस्तक की भाषा सरल, प्रवाहपूर्ण और शोधपरक है। लेखक ने हरियाणवी लोक साहित्य की गहराई में जाकर द्रौपदी के चरित्र को पुनः गढ़ा है। यह कार्य केवल साहित्यिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनरुत्थान
Autorenporträt
Anand Kumar Ashodhiya Poet - Author - Cultural Envoy A former Warrant Officer of the Indian Air Force with 32 years of distinguished service, Anand Kumar Ashodhiya combines the discipline of a soldier with the sensitivity of a poet. Known in Haryana's literary world as Kavi Anand Shahpur, he has written extensively in Hindi and Haryanvi on themes of valor, devotion, and cultural heritage. His literary imprint Avikavani Publishers is dedicated to preserving India's folk and classical traditions through modern expression. He lives in Mumbai, India.