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सहर्ष मैं 'शून्य से शून्य तक' कविता संग्रह को आपके समक्ष पेश करने का प्रयास कर रही हूँ जो इन्सान की ज़िन्दगी के सफ़र का वृतांत है ।इंसान को समय समय पर एहसास कराती है कि शून्य की भूमिका अन्दरूनी व बाह्य है । शून्य आरम्भ ही नहीं अंत भी है ...शून्य नगण्य है तो शून्य पूर्ण इकाई भी है ... इस पुस्तक में कविताएँ शून्यता के अनेक रंगों की तस्वीर तैयार करती हैं । कविताएँ शून्य के अनेक पहलुओं पर हमारा ध्यान धराती हैं जैसे हमारी उत्पत्ति अज्ञात है और जीवन की दौड़ का परिणाम शून्य ही है .. गम और ख़ुशी, हार व जीत, प्रेम और नफ़रत सब में शामिल है शून्यता...धरती पर आने के बाद हम नाम, रूप, रिश्ते, पहचान और महत्वाकांक्षाओं में उलझे रह जाते हैं।…mehr

Produktbeschreibung
सहर्ष मैं 'शून्य से शून्य तक' कविता संग्रह को आपके समक्ष पेश करने का प्रयास कर रही हूँ जो इन्सान की ज़िन्दगी के सफ़र का वृतांत है ।इंसान को समय समय पर एहसास कराती है कि शून्य की भूमिका अन्दरूनी व बाह्य है । शून्य आरम्भ ही नहीं अंत भी है ...शून्य नगण्य है तो शून्य पूर्ण इकाई भी है ... इस पुस्तक में कविताएँ शून्यता के अनेक रंगों की तस्वीर तैयार करती हैं । कविताएँ शून्य के अनेक पहलुओं पर हमारा ध्यान धराती हैं जैसे हमारी उत्पत्ति अज्ञात है और जीवन की दौड़ का परिणाम शून्य ही है .. गम और ख़ुशी, हार व जीत, प्रेम और नफ़रत सब में शामिल है शून्यता...धरती पर आने के बाद हम नाम, रूप, रिश्ते, पहचान और महत्वाकांक्षाओं में उलझे रह जाते हैं।
Autorenporträt
कवियित्री रेखा 'मलसियानी' गोपीचन्द आर्य महिला कालेज, अबोहर में वर्ष 2017 से निरन्तर प्राचार्य पद पर आसीन हैं ।अपनी संवेदनाओं, विचारों और अनुभवों को कविता के माध्यम से व्यक्त करती है। लगभग 22 वर्ष डी. ए. वी कालेज, अबोहर में स्नातकोत्तर इतिहास विभाग की विभागाध्यक्ष रही हैं। इसी प्रवाह में प्रवाहित होते समाज, प्रकृति, प्रेम, संघर्ष और जीवन के विविध पक्षों को अपनी काव्य संग्रह 'बिखरे पत्ते' में कविताएँ पिरोती है। 'ख़ामोश ज़िन्दगी' काव्य संग्रह में कवियित्री ने अपनी रचनाओं के माध्यम से केवल भावनाओं की अभिव्यक्ति ही नहीं की बल्कि सामाजिक चेतना, स्त्री विमर्श और मानवीय मूल्यों पर लगातार प्रश्न किया है ।