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कोह-ए-ग़म, जिसका अर्थ है "दुख का पहाड़," शायरी और साहित्य में गहरे दुःख, संघर्ष और पीड़ा के प्रतीक के रूप में प्रयुक्त होता है। यह शब्द उन भावनाओं को व्यक्त करता है, जब जीवन कठिनाइयों से घिरा होता है और इंसान खुद को अकेला और असहाय महसूस करता है। उर्दू ग़ज़लों और कविताओं में कोह-ए-ग़म को आशिक़ की जुदाई, समाज की बेरुख़ी और समय के सितम के संदर्भ में देखा जाता है। यह सिर्फ़ दर्द का बयान नहीं, बल्कि सहनशीलता और आत्मचिंतन का प्रतीक भी है, जो इंसान को मज़बूत बनने की प्रेरणा देता है।

Produktbeschreibung
कोह-ए-ग़म, जिसका अर्थ है "दुख का पहाड़," शायरी और साहित्य में गहरे दुःख, संघर्ष और पीड़ा के प्रतीक के रूप में प्रयुक्त होता है। यह शब्द उन भावनाओं को व्यक्त करता है, जब जीवन कठिनाइयों से घिरा होता है और इंसान खुद को अकेला और असहाय महसूस करता है। उर्दू ग़ज़लों और कविताओं में कोह-ए-ग़म को आशिक़ की जुदाई, समाज की बेरुख़ी और समय के सितम के संदर्भ में देखा जाता है। यह सिर्फ़ दर्द का बयान नहीं, बल्कि सहनशीलता और आत्मचिंतन का प्रतीक भी है, जो इंसान को मज़बूत बनने की प्रेरणा देता है।
Autorenporträt
विघ्नेश शिरढोणकर 'मिलाप' का जन्म 19 जनवरी 2003 को मध्यप्रदेश के धार शहर में हुआ। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सेंट नॉर्बर्ट सीनियर सेकेंडरी स्कूल से तथा माध्यमिक शिक्षा लोकमान्य विद्या निकेतन, इंदौर से पूरी की। इसके बाद, उन्होंने महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, बड़ौदा से स्नातक (बी.ए.) किया। वर्तमान में, वे संगीत उत्पादन (म्यूजिक प्रोडक्शन) का अध्ययन कर रहे हैं। उन्हें हकीकत पर आधारित शायरी, कविता और ग़ज़लें लिखना पसंद है। लेकिन इस पुस्तक में, उन्होंने अपने कॉलेज जीवन की परेशानियों और तनावों को उकेरा है। उनकी लेखनी में जीवन के वास्तविक अनुभवों की झलक देखने को मिलती है।