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ख़्वाब - कभी आँखों की चमक बनते हैं, तो कभी तकिए पर रखे अनकहे सवाल बनकर नींदें चुराते हैं। ये किताब ऐसे ही सपनों की बात करती है-जो जिए गए, जो अधूरे रह गए, और जो अब अपनी मंज़िल की ओर बढ़ रहे हैं। इन कविताओं में ज़िंदगी के तमाम रंग हैं प्रेम की नर्म सी छाँव, संघर्ष की तपिश, उम्मीद की हल्की रोशनी, और रोज़मर्रा की उन भावनाओं की झलक जो हमें इंसान बनाती हैं। हर कविता में एक एहसास है, हर पंक्ति एक छोटी सी यात्रा। अगर कभी आपने भी किसी सपने को दिल में बसाया है या ज़िंदगी की ठहराव भरी शामों में खुद से बातें की हैं-तो ये कविताएँ आपको अपनी ही कहानी जैसी लगेंगी।

Produktbeschreibung
ख़्वाब - कभी आँखों की चमक बनते हैं, तो कभी तकिए पर रखे अनकहे सवाल बनकर नींदें चुराते हैं। ये किताब ऐसे ही सपनों की बात करती है-जो जिए गए, जो अधूरे रह गए, और जो अब अपनी मंज़िल की ओर बढ़ रहे हैं। इन कविताओं में ज़िंदगी के तमाम रंग हैं प्रेम की नर्म सी छाँव, संघर्ष की तपिश, उम्मीद की हल्की रोशनी, और रोज़मर्रा की उन भावनाओं की झलक जो हमें इंसान बनाती हैं। हर कविता में एक एहसास है, हर पंक्ति एक छोटी सी यात्रा। अगर कभी आपने भी किसी सपने को दिल में बसाया है या ज़िंदगी की ठहराव भरी शामों में खुद से बातें की हैं-तो ये कविताएँ आपको अपनी ही कहानी जैसी लगेंगी।
Autorenporträt
'वारिस', एक कवि हैं, जिन्हें अपने पिता, स्व. श्री जयंत देशपांडे 'जय' से कविता विरासत में मिली। १९९७ में उनके अचानक निधन के बाद, 'वारिस' ने लेखनी संभाली। इंजीनियरिंग के बाद और आईटी क्षेत्र में होने के बावजूद, कविता उनकी पहचान रही है। हिंदुस्तानी भाषा में उनकी रचनाएँ जीवन, प्रेम और दर्शन को छूती ही नहीं बल्कि उनके आत्मा की गूंज बनती हैं।