आज की तेज़ रफ्तार और भोगवादी दुनिया में हम सब अधिक पाने की दौड़ में इतने उलझ चुके हैं कि सच्ची खुशी का असली मतलब कहीं खो गया है। यह किताब आपको उस खोए हुए संतोष और शांति की ओर ले जाती है, जो बाहर नहीं बल्कि हमारे भीतर छिपा हुआ है। "खुशियों का सफर" केवल एक किताब नहीं, बल्कि एक जीवन यात्रा है-जहाँ साधारण चीज़ों में असाधारण सुख खोजने की सीख मिलती है। इसमें बताया गया है कि किस तरह कम संसाधनों के बावजूद जीवन को संतोष और कृतज्ञता से भरा जा सकता है। लेखक उमेश रॉय भट्ट ने अपने अनुभवों, प्रेरणादायक कहानियों और व्यावहारिक उदाहरणों के माध्यम से यह स्पष्ट किया है
आज की तेज़ रफ्तार और भोगवादी दुनिया में हम सब अधिक पाने की दौड़ में इतने उलझ चुके हैं कि सच्ची खुशी का असली मतलब कहीं खो गया है। यह किताब आपको उस खोए हुए संतोष और शांति की ओर ले जाती है, जो बाहर नहीं बल्कि हमारे भीतर छिपा हुआ है। "खुशियों का सफर" केवल एक किताब नहीं, बल्कि एक जीवन यात्रा है-जहाँ साधारण चीज़ों में असाधारण सुख खोजने की सीख मिलती है। इसमें बताया गया है कि किस तरह कम संसाधनों के बावजूद जीवन को संतोष और कृतज्ञता से भरा जा सकता है। लेखक उमेश रॉय भट्ट ने अपने अनुभवों, प्रेरणादायक कहानियों और व्यावहारिक उदाहरणों के माध्यम से यह स्पष्ट किया है
डॉ. उमेश रॉय भट्ट का जन्म बिहार के भोजपुर ज़िले के तेल्हाड़ गाँव में हुआ। बचपन से ही ग्रामीण परिवेश, सादगीपूर्ण जीवनशैली और परिवार के संस्कारों ने उनके व्यक्तित्व को गहराई से प्रभावित किया। बचपन की परिस्थितियों में ही उन्होंने जीवन की चुनौतियों और संघर्षों को क़रीब से देखा, जिसने उनके भीतर समाज को समझने और मानव अनुभवों को आत्मसात करने की अनूठी दृष्टि विकसित की। डॉ. भट्ट ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियाँ हासिल कीं। परास्नातक के बाद शोध कार्य करते हुए उन्होंने पीएच.डी. की उपाधि अर्जित की। शिक्षा के प्रति उनकी गहरी लगन और सामाजिक सरोकारों ने उनके अकादमिक सफ़र को केवल डिग्रियों तक सीमित नहीं रखा, बल्कि जीवन के गहरे प्रश्नों और मानवता की खोज से जोड़ दिया। अपने व्यावसायिक जीवन में डॉ. उमेश रॉय भट्ट ने शिक्षा, समाज और संस्कृति के क्षेत्र में सक्रिय योगदान दिया है। वे मानते हैं कि ज्ञान का वास्तविक उद्देश्य केवल जानकारी जुटाना नहीं, बल्कि जीवन को समझना और उसे सार्थक बनाना है। लेखन की शुरुआत उन्होंने कविताओं और कहानियों से की, जहाँ संवेदनाएँ और अनुभव सहज भाषा में अभिव्यक्त होते थे। समय के साथ उन्होंने महसूस किया कि लेखन का सबसे बड़ा उद्देश्य जीवन को दिशा देना और लोगों को प्रेरित करना है। उनकी रचनाओं में गाँव की मिट्टी की खुशबू, आम आदमी की जद्दोजहद, संघर्ष और छोटी-छोटी खुशियों का गहरा अहसास मिलता है। उनकी पिछली पुस्तक "जीवंत स्मृतियाँ" को पाठकों ने विशेष रूप से सराहा। इसी पुस्तक के लिए उन्हें डॉ. प्रभा सिन्हा शिक्षक सम्मान 2025 से सम्मानित किया गया, जिसमें उन्हें ₹51,000 की सम्मान राशि और प्रशस्तिपत्र प्रदान किया गया। यह सम्मान उनके लेखन और शिक्षा दोनों क्षेत्रों में योगदान की स्वीकृति है। "खुश
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