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""मायाजाल में भ्रमित जीव सांसारिकता में ही जीवन गंवा देता है। जबकि जीवन का सही अर्थ है स्वयं को पहचानना व यहां आने के ध्येय का बोध कर पाना। स्वयं को पहचाना मतलब, ब्रह्मांड से जुड़ना, उसकी शक्तियों को समझना,उनसे समन्वय बनाना और अपनी चेतना व अनंत के बीच सेतु बनकर अपना उच्च उद्देश्य समझना है। यह भी कि हम स्वयं को शुद्ध करते हुए दुनिया में योगदान देने के लिए भेजे गए हैं। ऐसी ही माया-दौड़ से पृथक, स्वत्व-बोध के कुछ अनुभव हैं इस संकलन में। आशा है; इनसे सीखकर पाठकगण जीवन के सत्य-ध्येय की ओर प्रयाण कर पायेंगे।""

Produktbeschreibung
""मायाजाल में भ्रमित जीव सांसारिकता में ही जीवन गंवा देता है। जबकि जीवन का सही अर्थ है स्वयं को पहचानना व यहां आने के ध्येय का बोध कर पाना। स्वयं को पहचाना मतलब, ब्रह्मांड से जुड़ना, उसकी शक्तियों को समझना,उनसे समन्वय बनाना और अपनी चेतना व अनंत के बीच सेतु बनकर अपना उच्च उद्देश्य समझना है। यह भी कि हम स्वयं को शुद्ध करते हुए दुनिया में योगदान देने के लिए भेजे गए हैं। ऐसी ही माया-दौड़ से पृथक, स्वत्व-बोध के कुछ अनुभव हैं इस संकलन में। आशा है; इनसे सीखकर पाठकगण जीवन के सत्य-ध्येय की ओर प्रयाण कर पायेंगे।""
Autorenporträt
""लेखक का जन्म 20 जुलाई 1954 को हापुड़ (उत्तर प्रदेश) में हुआ। वह एक पब्लिक सेक्टर बैंक से जनरल मैनेजर पद से रिटायर होकर एक अन्य बड़े बैंक में इंटर्नल ओम्बड्समैन रहे। इस 40 वर्ष के पूर्ण समर्पित बैंकिंग कैरियर में समृद्ध अनुभव सहित उन्हें देश विदेश में यात्राओं सहित विभिन्न संस्कृतियों के तुलनात्मक अध्ययन के अवसर भी मिले, जिन्होंने इनको मानव के मन की सोच के विश्लेषण के अनंतर आत्म-बोध की ओर प्रेरित किया। अपनी मूल प्रकृति अनुसार ये अध्यात्म व सच्ची धार्मिकता की खोज में पूज्य परमहंस योगानंद जी की दीक्षा पाकर 'आत्म-बोध' की यात्रा पर अग्रसर हुए।""