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"मैं शायद तुम ही हूँ", 21 कविताओं की यह कवितावली जिसे प्रज्ञा नारायण ने रचा है, शब्दों के ज़रिये सीधा दिल में उतरने की एक मासूम कोशिश है। संकलित कवितायें पारंपरिक स्त्रीत्व तथा मॉडर्न वुमनहुड के द्वंद्व में फंसी एक आम महिला को स्थापित करती हैं। अपने सामाजिक सरोकार निभाती हुई, अपने भूले बिसरे यारों, दोस्तों को फिर से अपने जीवन में लाती हुई, अपनी ज़रूरतों को कल पर टालती हुई, अपने जीवन साथी के संघर्षों को शब्दों में उकेरती हुई, और मुश्किलों में भी, अपने सपनों को सहेजने की कोशिश करती हुई, यह उस हर महिला का चित्रण है, जो अपने जीवन में घर परिवार संभालते हुए भी दुनिया जीतने को अग्रसर है।

Produktbeschreibung
"मैं शायद तुम ही हूँ", 21 कविताओं की यह कवितावली जिसे प्रज्ञा नारायण ने रचा है, शब्दों के ज़रिये सीधा दिल में उतरने की एक मासूम कोशिश है। संकलित कवितायें पारंपरिक स्त्रीत्व तथा मॉडर्न वुमनहुड के द्वंद्व में फंसी एक आम महिला को स्थापित करती हैं। अपने सामाजिक सरोकार निभाती हुई, अपने भूले बिसरे यारों, दोस्तों को फिर से अपने जीवन में लाती हुई, अपनी ज़रूरतों को कल पर टालती हुई, अपने जीवन साथी के संघर्षों को शब्दों में उकेरती हुई, और मुश्किलों में भी, अपने सपनों को सहेजने की कोशिश करती हुई, यह उस हर महिला का चित्रण है, जो अपने जीवन में घर परिवार संभालते हुए भी दुनिया जीतने को अग्रसर है।
Autorenporträt
प्रज्ञा नारायण, विश्व के सर्वश्रेष्ठ माता पिता श्री नारायण प्रसाद शर्मा और माँ श्रीमती शारदा शर्मा के यहाँ जन्मी पहली संतान हैं, जिन्हें बहुत ही आज़ाद विचारों और व्यवहार के साथ बड़ा किया गया। मानवीय मूल्यों की गहरी समझ और हिन्दी भाषा के प्रति लगाव उन्हें अपने माता पिता से ही मिला है। वह हिन्दी और अंग्रेज़ी भाषा में बराबर का दख़ल रखती हैं। उन्होंने विज्ञान विषय से स्नातक और इंगलिश लिटरेचर से स्नातकोत्तर किया है। अपने करियर की शुरुआत उन्होंने अध्यापन से की लेकिन मन उनका रेडियो में बसता था इसलिए रेडियो जॉकी होना उनका दूसरा करियर रहा, जहां उनका शो एक साथ राजस्थान के पाँच शहरों में प्रसारित होता था। वर्तमान में वह वित्तीय सेक्टर में काम करते हुए अपने लिए हर रोज़ नये आयाम हासिल कर रही हैं।