"मैं शायद तुम ही हूँ", 21 कविताओं की यह कवितावली जिसे प्रज्ञा नारायण ने रचा है, शब्दों के ज़रिये सीधा दिल में उतरने की एक मासूम कोशिश है। संकलित कवितायें पारंपरिक स्त्रीत्व तथा मॉडर्न वुमनहुड के द्वंद्व में फंसी एक आम महिला को स्थापित करती हैं। अपने सामाजिक सरोकार निभाती हुई, अपने भूले बिसरे यारों, दोस्तों को फिर से अपने जीवन में लाती हुई, अपनी ज़रूरतों को कल पर टालती हुई, अपने जीवन साथी के संघर्षों को शब्दों में उकेरती हुई, और मुश्किलों में भी, अपने सपनों को सहेजने की कोशिश करती हुई, यह उस हर महिला का चित्रण है, जो अपने जीवन में घर परिवार संभालते हुए भी दुनिया जीतने को अग्रसर है।
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