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शहर में नये हो तुम इन कविताओं में कुछ बड़ा कहने की कोशिश नहीं है। बस वो बातें हैं, जो अक्सर दिमाग में आती रहीं - चलते हुए, किसी पुराने कमरे में बैठे हुए, या किसी नए शहर की खिड़की से बाहर देखते हुए। कभी किसी ने कहा - ""कहीं लिख लेना ये, वरना भूल जाओगे"", तो बस लिख लिया। शायद इनमें आपको कुछ अपना भी लगे, या कम से कम - कुछ जाना-पहचाना।

Produktbeschreibung
शहर में नये हो तुम इन कविताओं में कुछ बड़ा कहने की कोशिश नहीं है। बस वो बातें हैं, जो अक्सर दिमाग में आती रहीं - चलते हुए, किसी पुराने कमरे में बैठे हुए, या किसी नए शहर की खिड़की से बाहर देखते हुए। कभी किसी ने कहा - ""कहीं लिख लेना ये, वरना भूल जाओगे"", तो बस लिख लिया। शायद इनमें आपको कुछ अपना भी लगे, या कम से कम - कुछ जाना-पहचाना।
Autorenporträt
डॉ. लक्ष्मण पुंडलिक म्याकलवाड़ एक चिकित्सक हैं। 'शहर में नये हो तुम' उनकी पहली काव्य-पुस्तक है, जिसे उन्होंने बिना किसी पूर्व योजना के लिखा - बस कुछ एहसास थे जिन्हें शब्दों में सहेजना ज़रूरी लगा। वे कभी-कभी लिखते हैं, ज़्यादातर हिंदी में - और उनकी कविताएँ व्यक्तिगत अनुभवों, खामोश निरीक्षणों और भीतर के संवादों से जन्म लेती हैं। यह संग्रह उस यात्रा का दस्तावेज़ है जहाँ एक इंसान शहर की भीड़ में भी खुद को खोजने की कोशिश करता है।