शहर में नये हो तुम इन कविताओं में कुछ बड़ा कहने की कोशिश नहीं है। बस वो बातें हैं, जो अक्सर दिमाग में आती रहीं - चलते हुए, किसी पुराने कमरे में बैठे हुए, या किसी नए शहर की खिड़की से बाहर देखते हुए। कभी किसी ने कहा - ""कहीं लिख लेना ये, वरना भूल जाओगे"", तो बस लिख लिया। शायद इनमें आपको कुछ अपना भी लगे, या कम से कम - कुछ जाना-पहचाना।
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