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स्त्री तुम अब बदल जाओ, एक कविता संग्रह हैं, जो महिलाओं के जन्म से लेकर वृद्ध अवस्था तक के सफ़र को बयां करने का प्रयत्न करता है। उनके द्वारा अपने अस्तित्व को बनाने के लिये सामाजिक, आर्थिक और मानसिक युद्ध जो हर रोज परम्पराओं और भेदभाव के खिलाफ लड़े जाते है, उसे दर्शाता है। इन कविताओं के माध्यम से कही हुई कहानियां, हमें न्याय की दूरबीन से उस समाज से रूबरू कराती है, जो इस तकनीकी दौर में होना चाहिए। यह कविताएं एक नई सोच, अलग नजरिया और नई परम्पराओं आगाज़ है।

Produktbeschreibung
स्त्री तुम अब बदल जाओ, एक कविता संग्रह हैं, जो महिलाओं के जन्म से लेकर वृद्ध अवस्था तक के सफ़र को बयां करने का प्रयत्न करता है। उनके द्वारा अपने अस्तित्व को बनाने के लिये सामाजिक, आर्थिक और मानसिक युद्ध जो हर रोज परम्पराओं और भेदभाव के खिलाफ लड़े जाते है, उसे दर्शाता है। इन कविताओं के माध्यम से कही हुई कहानियां, हमें न्याय की दूरबीन से उस समाज से रूबरू कराती है, जो इस तकनीकी दौर में होना चाहिए। यह कविताएं एक नई सोच, अलग नजरिया और नई परम्पराओं आगाज़ है।
Autorenporträt
ख़ुद का तआरुफ़ करूं अभी ऐसी बनी शख्सियत नहीं। मेरा नाम सुचित्रा हैं। मीरांडा हाउस, यूनिवर्सिट ऑफ दिल्ली से भूगोल में ऑनर्स किया हैं। यूजीसी - नेट क्वालीफाइड होने के साथ ही बी.एड की डिग्री हासिल की हैं। दिल्ली में सुखमंच थियेटर करने के दौरान लिखने में रुचि बढ़ी। भविष्य में भी भावनाओ को कलम के ज़ुबानी सुनाने की इच्छा रखती हूं।आज कल म. एड की डिग्री के साथ बाल मनोविज्ञान और रेख़्ता फाउंडेशन से उर्दू सीखने में मशग़ूल हूं।