असल में प्रबल आवेग के बहाव के बाद दिल में एक तरह का दुख आ जाता है, और थका हुआ दिल तब अपनी अनुभूति के विषय को कुछ समय के लिए दूर हटाए रखना चाहता है। भाव-समुद्र के इस भाटे के समय, तले का सारा-का-सारा दबा हुआ कीचड़ बाहर निकल आता है। जो मोह लाता था, उससे वितृष्णा हो जाती है। महेन्द्र किसलिए अपने को इस तरह अपमानित कर रहा है, सो आज वह नहीं समझ सका। आज वह अपने मन में कहने लगा, "मैं सब तरह से विनोदिनी से श्रेष्ठ हूँ, फिर भी आज मैं सब तरह का छोटापन और दुत्कार स्वीकार करके एक घिनौने भिखारी की तरह उसके पीछे-पीछे सारी रात दौड़ता फिर रहा हूँ! ऐसा अनोखा पागलपन किस शैतान ने मेरे दिमाग में भर दिया!"
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