स्वामी विवेकानन्द की यह पुस्तक ध्यान और आत्म-खोज के मार्ग पर एक प्रकाशस्तंभ है। ध्यान की परिवर्तनकारी शक्ति को पहचानकर स्वामी विवेकानंद ने इसे आत्म-साक्षात्कार और आध्यात्मिक जागृति का मुख्य साधन माना। इस पुस्तक में वे ध्यान के अभ्यास की चुनौतियों और गलत धारणाओं को दूर करने के लिए गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। स्वामी विवेकानंद एक नियमित ध्यान अभ्यास की महत्ता, विकर्षणों को नियंत्नित करने और गहन एकाग्रता प्राप्त करने के उपायों पर व्यावहारिक मार्गदर्शन देते हैं। इसके साथ ही, वे ध्यान के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक प्रभावों पर भी प्रकाश डालते हैं। यह पुस्तक केवल सिद्धांतों तक सीमित नहीं, बल्कि स्वामी विवेकानंद के व्यक्तिगत अनुभवों से परिपूर्ण है, जो उनके गहरे मानसिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण को उजागर करती है।
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