मानव विश्वमित्र एक ढीला-सा, ढाला-सा व्यक्ति है। बुद्धि शायद है पर इस्तमोल करने का कष्ट अब कौन उठाये। वैसे ही वह अपने मित्रों से बहुत परेशान है, ऊपर से रघुवर नाथ और उसकी रूपगर्विता पत्नी प्रेमा उसके घर में मेहमान हैं। उसके बचपन का मित्र गोविंद शर्मा एक तड़कीला-भड़कीला युवक है जो दिल हाथ में लिए उछालता फिरता है कि कोई तो हो जो उसे लोप ले। इस बार लोपा रघु की पत्नी प्रेमा ने। आप मिलेंगे धनंजय से जिसे डाक्टर सुगंधा ने घायल किया हुआ है। यहाँ पर डरजीत कुमार भी है जो बहुत सोच-विचार कर पूरे आत्मविश्वास के साथ जयमाला के सामने अपना प्रेम-प्रस्ताव रखता है। जयमाला ने क्या किया यह तो नाटक में ही पता चलेगा। और इन सब के बीच में रघु रचता है एक षडयंत्र। वह भरी महफिल में बंटी को आत्महत्या के लिए उकसाता है। क्या वह स्वयं ही अपने रचे षडयंत्र का शिकार हो जाता है? अनोखे पात्रों वाला हँसी-ठहाकों से भरपूर नाटक।
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