उत्तराखण्ड की पृष्ठभूमि पर आधारित मेरे पिछले उपन्यास 'राघव' के बाद उसी श्रृंखला में... 'जुन्याली' उत्तराखण्ड के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परिवेश में पगी एक गाथा है। यह कहानी मुगल साम्राज्य के पतन और ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत में वर्चस्व स्थापित करने की पृष्ठभूमि में शुरु होती है। गोरखाओं द्वारा ग्ढ़वाल के राजा प्रद्युम्न शाह को युद्ध में मार, गढ़वाल पर नियंत्रण कर लिया था। प्रद्युम्न शाह के पुत्र सुदर्शन शाह ने अंग्रेजों की मदद से गढ़वाल को पुनः प्राप्त कर लिया, किंतु युद्ध में हुए अंग्रेजों के खर्चे को चुकाने में असमर्थता के कारण उन्हें केवल अलकनंदा पार का हिस्सा, जिसे आज टिहरी गढ़वाल कहा जाता है, उससे ही विवश हो स्वीकार करना पड़ा। सुदर्शन शाह की अंग्रेजों के प्रति भक्ति-भाव से रुष्ट, असंतुष्ट छोटे-छोटे राजा नए ठिकानों की खोज में निकल प्ड़े। इसी खोज में ब्रह्मदेव और भूदेव ने दो अज्ञात गढ़ों में शरण ली। ब्रह्मगढ़ और भूगढ़ के किशोर वय साहसी बालू और किशोरी के पावन प्रेम तथा ब्रह्मगढ़ की राजकुमारी 'जुन्याली' और भूगढ़ राज्य के सभापति पृथ्वी सिंह के प्रेम, की संघर्षमय यात्रा में भारत की स्वंत्रता संग्राम से जा जुड़ती है। इस से आगे उपन्यास 'जुन्याली' में ..
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