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ओशो प्रेमियों एवं संन्यासियों को अलग रखकर बात करें तो अधिकतर लोगों की नजर में ओशो एक व्यक्ति का ही नाम है जो 80 के दशक में आध्यात्मिक गुरु के रूप में उभरा कम था बल्कि विवादों एवं आरोपों में घिरा अधिक था। दुर्भाग्य से ऐसा मानने व सोचने वालों की संख्या ज्यादा है। यह पुस्तक इसी बात को ध्यान में रखकर लिखी गई है। जहां एक ओर यह पुस्तक ओशो पर लगे तमाम आरोपों को सुलझाती है वहीं इस बात को भी रेखांकित करती है कि 'आखिर ओशो को गलत समझा क्यों गया?' साथ ही बड़ी ईमानदारी के साथ प्रश्न उठाती है कि 'क्या ओशो के अपने संन्यासी भी ओशो को समझ पाए हैं या नहीं?' ऐसे में यह विषय और भी गम्भीर और महत्त्वपूर्ण हो जाता है…mehr

Produktbeschreibung
ओशो प्रेमियों एवं संन्यासियों को अलग रखकर बात करें तो अधिकतर लोगों की नजर में ओशो एक व्यक्ति का ही नाम है जो 80 के दशक में आध्यात्मिक गुरु के रूप में उभरा कम था बल्कि विवादों एवं आरोपों में घिरा अधिक था। दुर्भाग्य से ऐसा मानने व सोचने वालों की संख्या ज्यादा है। यह पुस्तक इसी बात को ध्यान में रखकर लिखी गई है। जहां एक ओर यह पुस्तक ओशो पर लगे तमाम आरोपों को सुलझाती है वहीं इस बात को भी रेखांकित करती है कि 'आखिर ओशो को गलत समझा क्यों गया?' साथ ही बड़ी ईमानदारी के साथ प्रश्न उठाती है कि 'क्या ओशो के अपने संन्यासी भी ओशो को समझ पाए हैं या नहीं?' ऐसे में यह विषय और भी गम्भीर और महत्त्वपूर्ण हो जाता है और मांग करने लगता है एक ऐसी किताब की जो इन सब सवालों व आरोपों पर निष्पक्ष होकर प्रकाश डाले ताकि ओशो की वास्तविक व सच्ची छवि उभर सके और ओशो बिना किसी गलत धारणा व विवाद के सीधे-सीधे समझ में आ सकें।