जो कुछ मैंने उससे पाया है, उससे उऋण होने का समय बीत गया। उसकी रात्नि को अपना प्रभात मिल गया, और तुमने मुझे अपने आलिंगन में ले लिया है। वह कृतज्ञता और वे उपहार मैं तुम्हारे पास लाया हूँ जो उसके लिए थे, उसके प्रति अपने समस्त अपराधों की क्षमा-प्रार्थना मैं तुमसे करता हूँ। मैं तुम्हारी सेवा में अपने प्रेम के उन पुष्पों को अर्पित करता हूँ, जो तब कलिका के रूप में बंद थे, जब यह उनके खिलने की प्रतीक्षा कर रही थी। - इसी गीत संग्रह से
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