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दस नंबर मधु मिस्त्री गली के ऊपर के कमरे में चिरकुमार सभा की बैठकें होती हैं। यह सभा के सभापति चंद्रमाधव बाबू का मकान है। वे ब्राह्मण कॉलेज के अध्यापक हैं। देश के कामों में बड़ा उत्साह दिखाते हैं। मातृभूमि की उन्नति के लिए उनके मस्तिष्क में तरह-तरह के विचार आते रहते हैं। शरीर दुबला मगर मजबूत है। ललाट ऊँचा है और बड़ी-बड़ी आँखें विचारों से डबाडब भरी होती हैं। पहले-पहल इस सभा के ढेर सारे सदस्य थे। इस समय सभापति को छोड़कर केवल तीन सदस्य हैं। इस गिरोह से निकले युवक विवाह करके गृहस्थ को गए हैं, और तरह-तरह के धंधों में लग गए हैं। इन दिनों ये लोग किसी तरह के चंदे की रसीद देखकर पहले-पहल उसे हँसी में…mehr

Produktbeschreibung
दस नंबर मधु मिस्त्री गली के ऊपर के कमरे में चिरकुमार सभा की बैठकें होती हैं। यह सभा के सभापति चंद्रमाधव बाबू का मकान है। वे ब्राह्मण कॉलेज के अध्यापक हैं। देश के कामों में बड़ा उत्साह दिखाते हैं। मातृभूमि की उन्नति के लिए उनके मस्तिष्क में तरह-तरह के विचार आते रहते हैं। शरीर दुबला मगर मजबूत है। ललाट ऊँचा है और बड़ी-बड़ी आँखें विचारों से डबाडब भरी होती हैं। पहले-पहल इस सभा के ढेर सारे सदस्य थे। इस समय सभापति को छोड़कर केवल तीन सदस्य हैं। इस गिरोह से निकले युवक विवाह करके गृहस्थ को गए हैं, और तरह-तरह के धंधों में लग गए हैं। इन दिनों ये लोग किसी तरह के चंदे की रसीद देखकर पहले-पहल उसे हँसी में उड़ा देते हैं। अगर इस पर भी रसीदधारी में टिके रहने का लक्षण दिखाई दे तो गाली-गलौज शुरू कर देते हैं। अपना उदाहरण याद आते ही देश-प्रेमियों के प्रति उनके मन में अत्यंत अनादर जन्म लेता है।