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ऐसे ही सच-झूठ मिलाकर आदमी की जिंदगी कट जाती है-कुछ विधाता गढ़ते हैं, कुछ आदमी अपने-आप गढ़ लेता है, और कुछ पाँच जने मिलकर गढ़ देते हैं। जिंदगी को एक तरह की काल्पनिक और अकाल्पनिक, असल और बनावट की पंचमेल मिठाई ही समझना चाहिए। केवल कवि जो गीत गाते वे सत्य और संपूर्ण होते। गीतों का विषय वही होता राधा और कृष्ण, वही सनातन नर और सनातन नारी, वही आदिकाल से चला आता दुख और अनंत सुख। उन्हीं गीतों में उनकी अपनी यथार्थ बातें होतीं, और उन गीतों की सच्चाई को अमरापुर के राजा से लेकर दीन-दुखी प्रजा तक सब अपने-अपने हृदय की कसौटी पर कसकर आजमा चुके हैं। उनके गीत सबकी जुबान पर थे। चाँदनी खिलते ही, जरा-सी दक्षिण की…mehr

Produktbeschreibung
ऐसे ही सच-झूठ मिलाकर आदमी की जिंदगी कट जाती है-कुछ विधाता गढ़ते हैं, कुछ आदमी अपने-आप गढ़ लेता है, और कुछ पाँच जने मिलकर गढ़ देते हैं। जिंदगी को एक तरह की काल्पनिक और अकाल्पनिक, असल और बनावट की पंचमेल मिठाई ही समझना चाहिए। केवल कवि जो गीत गाते वे सत्य और संपूर्ण होते। गीतों का विषय वही होता राधा और कृष्ण, वही सनातन नर और सनातन नारी, वही आदिकाल से चला आता दुख और अनंत सुख। उन्हीं गीतों में उनकी अपनी यथार्थ बातें होतीं, और उन गीतों की सच्चाई को अमरापुर के राजा से लेकर दीन-दुखी प्रजा तक सब अपने-अपने हृदय की कसौटी पर कसकर आजमा चुके हैं। उनके गीत सबकी जुबान पर थे। चाँदनी खिलते ही, जरा-सी दक्षिण की हवा चलते ही, देश में चारों ओर न जाने कितने वन, कितने रास्ते, कितनी खिड़कियाँ और कितने आँगन में उनके रचे हुए गीत गूंज उठे। उनकी ख्याति की कोई हद नहीं।